Govardhan Puja – गोवर्धन पूजा

जब भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्ग के राजा इंद्र को उनके घमंड चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा कर पराजित किया, तब से गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गिरिराज पर्वत के बारे में माना जाता है कि इस पर्वत की खूबसूरती से पुलस्त्य ऋषि बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने द्रोणांचल पर्वत से इसे उठाकर साथ लाना चाहा तो गिरिराज जी ने कहा कि आप मुझे जहाँ भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। रास्ते में साधना के लिए ऋषि ने पर्वत को नीचे रख दिया फिर वे दोबारा उसे हिला नहीं सके। इससे क्रोध में आकर उन्होंने पर्वत को शाप दे दिया कि वह रोज घटता जाएगा। माना जाता है उसी समय से गोवर्धन पर्वत का कद लगातार घट रहा है।

भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला का वर्णन विष्णुपुराण के पंचम खंड के 10, 11 एवं 12वें अध्याय में किया गया है।

इति कृत्वा मतिं कृष्णो गोवर्धनमहीधरम् ।
उत्पाट्यैककरेणेव धारयामास लीलया ॥ [ विष्णुपुराणम्/5/11/16 ]
अर्थात: श्री कृष्णचन्द्र ने ऐसा विचार कर गोवर्धन पर्वत को उखाड़ लिया और उसे लीला से ही अपने एक हाथ पर उठा लिया।

गोवर्धन पूजा की विधि और नियम
❀ गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
❀ इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और इसे फूलों से सजाया जाता है।
❀ इस दिन गाय की पूजा करने का विधान है। लेकिन साथ ही कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल होने वाले जानवरों की भी पूजा की जाती है।
❀ पूजा में बने गोवर्धन पर्वत पर कुमकुम, जल, फल, फूल और नैवेद्य आदि चढ़ाएं। फिर धूप, दीपक जलाएं।
❀ पूजा के बाद गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें। इस दौरान जौ की बुवाई करते समय कलश से पानी भी गिराया जाता है।
❀ इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ-साथ भगवान कृष्ण और भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करने का विधान है।

यह भी जानें
  • श्री गोवर्धन महाराज आरती
  • आरती कुंजबिहारी की
  • श्री विश्वकर्मा आरती
  • श्री गणेश आरती
  • श्री कुबेर आरती
  • श्री राम स्तुति
  • आरती: ॐ जय लक्ष्मी माता
  • आरती जय अम्बे गौरी
  • महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् – अयि गिरिनन्दिनि
  • अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं
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Govardhan Puja is celebrated ever since Bhagwan Krishna defeated Indra, the king of heaven, by lifting the Govardhan mountain to quell his pride.

गोवर्धन पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा का त्योहार गिरिराज गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण को समर्पित है।

गोवर्धन पूजा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मनुष्य को प्रकृति से जोड़ती है। इसमें गोवर्धन पर्वत के रूप में प्रकृति की पूजा की जाती है। इसके साथ ही गायों की भी पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में, गाय को एक पवित्र जानवर और देवी लक्ष्मी का एक रूप माना जाता है। यह पर्व प्रकृति के साथ-साथ गायों के महत्व को भी दर्शाता है। जो व्यक्ति गोवर्धन पूजा को पूरे विधि-विधान से करता है, उसके धन, संतान, समृद्धि और सुख में वृद्धि होती है।

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