Govatsa Dwadashi – गोवत्स द्वादशी

कार्तिक कृष्ण द्वादशी के दिन आने वाले गोवत्स द्वादशी उत्सव के दिन गाय माता एवं उनके बछड़े की पूजा की जाती है। यह त्यौहार एकादशी के एक दिन के बाद द्वादशी को तथा धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी की पूजा गोधूलि बेला में की जाती है। जो लोग गोवत्स द्वादशी का पालन करते हैं, वे दिन में किसी भी गेहूं और दूध के उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं।

भारत के कुछ हिस्सों मे इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं। गुजरात में इसे वाघ बरस भी कहते हैं। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नंदिनी गाय को दिव्य माना गया हैं।

गोवत्स द्वादशी पूजा महिलाओं द्वारा पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय-बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पटला/पट्टा/पाट पर रख कर उनकी विधिवत पूजा की जाती है।

ध्यान रखें: भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।

स त्वां कृष्णाभिषेक्ष्यामि गावं वाक्यप्रचोदितः ।
उपेन्द्रत्वे गवामिन्द्रो गोविन्दस्त्वं भविष्यसि ॥ विष्णु पुराण 5/12/12 ]
भावार्थ- हे कृष्ण! अब मैं गौऔं के वाक्यानुसार ही आपका उपेंद्र पद पर अभिषेक करूँगा तथा आप गौऔं के इंद्र हैं, इसलिए आपका नाम गोविंद भी होगा।

संबंधित अन्य नामबछ बारस, वाघ बरस, नंदिनी व्रत
सुरुआत तिथिकार्तिक कृष्ण द्वादशी

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श्री राम भजन (Shri Ram Bhajan)

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On the day of Kartik Krishna Dwadashi, Gau mata and her calf are worshiped on the day of Govats Dwadashi. This festival is celebrated on Dwadashi after one day of Ekadashi and one day before Dhanteras.

गोधूलि बेला

पशु चरकर वापस अपने बसेरे की ओर जाते हों तो वह काल गोधूलि कहलाती है। इसके अलावा जब गाय चरकर वापस अपने ठिकाने पर जा रही हो और उनके पैरों की धूल उड़कर सूरज की लालिमा को ढक रही हो तो उस समय जो काल होता है वह गोधूलि कहा जाता है। शास्त्रों में गोधूलि बेला को विवाह-शादी के कार्यों के लिए शुभ माना गया है। उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है।

जब विवाह मुहूर्त में क्रूर ग्रह, युति वेद, मृत्यु बाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर विवाह की शुद्ध लग्न और समय न निकल रहा हो तो गोधूलि बेला में विवाह करना चाहिए।

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आवृत्ति – वार्षिक

समय – 1 दिन

सुरुआत तिथि – कार्तिक कृष्ण द्वादशी

समाप्ति तिथि – कार्तिक कृष्ण द्वादशी

महीना अक्टूबर / नवंबर

पिछले त्यौहार – 21 October 2022, 1 November 2021, 12 November 2020, 25 October 2019, 4 November 2018

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